“कसोल की यात्रा के मेरे अनुभव “
“कसोल की यात्रा के अनुभव मेरे जीवन की रोमांचक उपलब्धि हैं । इसके पहले मैंने देश-विदेश घूमने वाली यूरोपीय स्त्रियों की बहुत सी दास्तानें सुनी थीं। जगह जगह घूमने के दौरान कई अकेली विदेशी महिलाओं को अकेले घूमते देखा भी था, पर भारतीय स्त्रियाँ अकेली घूमती है या नहीं, इसके बारे में कोई भी आईडिया नहीं था। मन में अनेक प्रश्न उठते थे- क्या महिलाओं का अकेले घूमना सुरक्षित है? भारत में कितनी महिलाएं अकेली घुमक्क्ड़ हैं? कौन सी जगहें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं? इन सारे प्रश्नों का उत्तर अब गूगल पर मिल जाता है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। मुझे पता नहीं था कि भारत में औरतें भी अकेली घूमने जा सकती हैं, इसलिए कभी अकेले बाहर सिर्फ़ घूमने के लिए निकलने की हिम्मत नहीं हुयी। लेकिन आखिर मैं भी सोलो ट्रिप पर निकली।इस पोस्ट में मैं आपको हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित खूबसूरत गाँव कसोल की यात्रा के अपने अनुभवों के बारे में बताऊंगी, जहाँ 2017 में गयी थी। वह मेरी पहली एकल यात्रा या सोलो ट्रिप थी। इसके पहले महिलाओं द्वारा अकेले घूमने के बारे में मैंने सिर्फ़ किताबों में पढ़ा था । यात्राएँ तो मैंने भी कई बार अकेले की थीं, लेकिन अकेले घूमने पहली बार निकली थी।”
कसोल की यात्रा की योजना मैंने अचानक बनायी थी। अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ ख़ूब घूमी थी, लेकिन अकेले नहीं । कुछ सालों से अकेली यात्रा पर जाने के बारे में सोच रही थी, लेकिन तब तक जगह नहीं तय कर पायी थी। यह 2017 की बात है दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट ने हिमाचल प्रदेश स्थित एक गाँव कसोल के बारे में बताया। इसके बाद मैंने गूगल पर कसोल के बारे में सर्च किया। कसोल के बारे में पढ़कर मैंने तय कर लिया कि अपनी पहली सोलो ट्रिप यहीं की होगी।
मैंने कहीं से एयरबीएनबी (Airbnb) के बारे में सुना था, लेकिन पहले कभी उससे बुकिंग नहीं की थी। एयरबीएनबी का ऐप डाउनलोड किया। मेरा मन तो कैंपिंग करने का था, लेकिन अकेले कैंप में रुकने की हिम्मत नहीं थी। अकेली होने के ही कारण मुझे होमस्टे का ऑप्शन ज़्यादा ठीक लगा। मैंने Airbnb पर कसोल के लिए होमस्टे की सर्च शुरू कर दी। आखिर में मुझे एक बहुत सुंदर सा होमस्टे मिल गया। मैंने वहाँ एक बेड बुक किया। यह बताती चलूँ कि अलग-अलग होमस्टे की पॉलिसी अलग होती है। कुछ जगहों पर आप कमरे बुक कर सकते हैं, तो कुछ जगह सिर्फ़ बेड। कहीं-कहीं दोनों ही सुविधाएँ होती हैं।
रुकने की जगह निश्चित हो गयी थी, लेकिन अब मेरे सामने समस्या थी यात्रा की । मुझे सार्वजनिक परिवहन से जाना ज्यादा सुरक्षित लगा। मैंने हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की वेबसाइट पर जाकर मनाली जाने वाली वाली बस में ऑनलाइन एक सीट बुक करा लिया। इसके पहले मैं हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की बस से मनाली जा चुकी थी। HRTC की दिल्ली से मनाली जाने वाली एसी वॉल्वो बसों का नाम हिमसुता है। ये बसें शाम को साढ़े पाँच बजे से दस बजे तक आधे से एक घंटे के अंतराल पर दिल्ली से मनाली के बीच चलती हैं। हिमसुता मुझे बहुत अच्छी लगती है। बहुत ही आरामदेह और सुरक्षित बस सेवा है। ये बसें बहुत नियम से चलती हैं, अपने समय से 1 मिनट भी लेट नहीं होतीं और रास्ते में बहुत अच्छी जगह पर रूकती हैं। सार्वजनिक बस से जाने के बारे में जैसा मैंने सोचा था, वैसा ही हुआ। पूरी यात्रा में मुझे कहीं पर भी असहज और असुरक्षित महसूस नहीं हुआ। बस में सहयात्री भी अच्छे थे और ड्राइवर और कंडक्टर भी बहुत ही सहयोग कर रहे थे। मैं जितना सोच रही थी, अकेले जाने में बिलकुल परेशानी हुई नहीं।
हिमसुता से मैं भुंतर तक गयी। यह दिल्ली-मनाली के मार्ग में पड़ने वाला एक बड़ा क़स्बा है। मनाली जाने के लिए एयरपोर्ट भी यहीं है। भुंतर से मैंने मणिकरण की बस पकड़ी। कसोल, भुंतर से मणिकरण के रास्ते में पड़ता है। हिमाचल प्रदेश की लोकल बस में बैठकर अलग ही अनुभव हुआ। वहाँ के लोगों को नजदीक से जानने का मौका मिला। कुछ छोटे-छोटे बच्चे बस से स्कूल जा रहे थे। बस की क्वालिटी कोई बहुत अच्छी नहीं थी। बहुत झटके लग रहे थे। कुछ बच्चे उल्टी कर रहे थे। मेरा भी सर चकरा रहा था, लेकिन मैंने दवाई ले ली थी।
कसोल पहुँचकर मैंने अपने होमस्टे के होस्ट संजय को फोन किया। मेरा होमस्टे “चोज” नाम के एक गाँव में था, जो कसोल से लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। संजय ने कहा कि मणिकरण की दिशा में आगे बढ़िए, एक पुल पड़ेगा। मैं आपको वहाँ लेने आ जाऊँगा। उसने बताया कि उसे कोई जरूरी काम आ गया है, इसलिए वह कसोल तक नहीं आ सकता। एक अनजानी जगह पर अकेले जाने में अजीब तो लग रहा था, लेकिन कोई और विकल्प भी नहीं था।
मैंने एक दुकान वाले से मणिकरण की ओर का रास्ता पूछा और अपना बैकपैक पीठ पर लादकर चल पड़ी। मैंने रात भर यात्रा की थी। बहुत थकी हुई थी। उसके बाद भी कसोल का माहौल और खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य देखकर जी बहुत खुश हो गया। कसोल के मुख्य बाज़ार में बहुत सी लडकियाँ दिख रही थीं। कुछ अकेली थीं और कुछ दो या तीन के ग्रुप में। मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि एक मैं ही अकेली महिला यात्री नहीं थी। कसोल के तीन दिन के प्रवास में मुझे अनेक लडकियाँ बैकपैक टाँगे अकेली घूमती नजर आयीं। मेरे लिए यह नज़ारा एकदम अनोखा था । एक नयी दुनिया मेरे सामने खुल गयी थी। इसके पहले मैं यह सोचती थी कि भारत में भारतीय स्त्रियाँ अकेली बहुत कम घूमती हैं । कसोल जाकर यह भ्रम दूर हो गया।
मणिकरण की सड़क के साथ-साथ पार्वती नदी बहती है । मेरा मन हो रहा था कि मैं कुछ देर रुककर आसपास के नज़ारे देख लूँ, लेकिन यह चिंता भी थी कि कहीं संजय पुल पर आकर इंतज़ार न कर रहा हो । इसलिए मैं चलती चली गयी। रास्ता इतना सुन्दर था कि मेरी सारी थकान दूर हो गयी। हालांकि तब तक पीठ पर भारी बैग लादकर चलने की आदत नहीं थी, इसलिए पीठ दुःख रही थी। जब पुल पर पहुँचकर संजय को फोन किया, तो उसने कहा कि पुल पार करके इस तरफ़ आ जाइए। मैं पहले ही एक किलोमीटर चल चुकी थी । मुझे बहुत तेज़ गुस्सा आया। पुल के बीच में पहुँचकर मैं ठहर गयी। बारिश का मौसम था। पार्वती नदी अपने उफान पर थी। नदी के तेजी से बहने के कारण पानी के छींटे लगभग 30-40 फिट ऊपर तक उठ रहे थे। पूरा झूला पुल उससे भीगा हुआ था। नदी के ऊपर दूर तक धुंध सी छायी हुई थी।
कुछ देर के लिए मैं खो सी गयी। अचानक पुल के उस पार देखा, तो कोई मुझे देख रहा था। मैं समझ गयी कि वह संजय ही होगा। मैंने तेज़ी से पुल पार किया और उसके पास पहुँच गयी। उसने अपना परिचय दिया। मेरा नाम लेकर कंफर्म किया। फिर पीछे चलने का इशारा करके चल दिया। मैं चल तो पड़ी, लेकिन मन बहुत सी आशंकाओं से घिरा हुआ था। मानसून की वजह से वह कच्चा पगडण्डी का रास्ता कीचड़ से सना हुआ था और उसके दोनों तरफ जंगली झाड़ियां थी। बादलों की वजह से हल्का-हल्का अँधेरा घिर आया था। पूरा माहौल एक रहस्यमय चुप्पी से भरा हुआ था। वह मेरी घुमक्कड़ी में की गयी यात्राओं का सबसे सुन्दर रास्ता था, जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकती । मैंने उससे पूछा “कितनी दूर है घर?” उसने कहा, “बस थोड़ी दूर।“ ऐसा कहते-कहते उसने मुझे आधा किलोमीटर और चलाया। बाद में पता चला कि पहाड़ के लोगों का बस थोड़ी दूर पौन से लेकर डेढ़ और कभी-कभी दो किलोमीटर से कम नहीं होता। मुझे लग रहा था कि मेरा सफर ख़त्म ही नहीं होगा, लेकिन आख़िरकार मंज़िल आ ही गयी।
घर पहुँचकर मेरी जान में जान आयी। संजय ने मुझे मेरा कमरा दिखाया। मेरे कमरे में दो बेड थे। मैंने संजय से कहा कि वह चाहे तो दूसरा बेड किसी और को दे सकता है। लेकिन संजय ने कहा कि उसके होमस्टे की पॉलिसी है कि वह महिला सोलो ट्रैवलर्स के रूम में दूसरी अकेली महिला को ही रखते हैं, किसी और को नहीं। इस प्रकार जब तक कि दूसरी कोई अकेली महिला नहीं आती मैं अपने रूम में अकेले रहने को स्वतंत्र थी। थोड़ी देर बाद एक लड़की चाय के लिए पूछने आयी। मैंने कहा कि मुझे काली चाय चाहिए और उन्होंने शानदार काली चाय बनायी थी। होमस्टे में अलग प्रकार का अनुभव हुआ। चंडीगढ़, पंजाब, दिल्ली और अन्य कई राज्यों से युवक-युवतियाँ उस होमस्टे में रुके हुए थे। कुछ जोड़े भी थे और कुछ बड़े ग्रुप। होमस्टे पहुँचते-पहुँचते शाम हो गयी थी। इसलिए मैं ज्यादा घूम नहीं पायी, लेकिन मेरे लिए आसपास के नज़ारे ही काफी थे। पार्वती नदी बिल्कुल पास में बह रही थी। तेज़ी से बहते पानी का शोर होमस्टे में साफ-साफ सुनाई दे रहा था। बारिश के कारण आसपास का मैदान फूलों और अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियों से भरा हुआ था। बारिश से धुलकर पेड़-पौधों के पत्ते चमकदार हरे रंग के दिख रहे थे। घाटी में बादल छाए हुए थे। मौसम बिल्कुल भीगा था। यह पूरा वातावरण मुझे अभिभूत कर रहा था। मैं रात को बहुत देर तक बालकनी में बैठकर पार्वती नदी की आवाज सुनती रही।
शेष अगली पोस्ट में…
उस सुंदरता को महसूस किया जा सकता है जो शब्द शब्द बिखरी हुई है। I love solo trips ♥️
❤️
कितना सुंदर समा लग रहा है। सोलो ट्रैवलिंग मेरे लिए भी अभी अनजाना ही है। आस पास तो अकेले घूम चुकी हूँ। पर पूरा एक ट्रिप अकेले करने की ख्वाइश अभी भी है।
मेरे लिए कसोल की यात्रा अविस्मरणीय थी। जीवन में सभी को एक बार तो सिर्फ़ अपने साथ घूमने जाना ही चाहिए। आप भी निकल लीजिए कभी अकेले।
बहुत ही रोचक यात्रा वर्णन। कई लड़कियों को इससे प्रेरणा मिलेगी। जयपुर की दो दिनों की सोलो ट्रिप की है पर इस तरह पहाड़ों पर होम स्टे में रुकना एक अलग ही अनुभव होगा। इस जन्म में यह भी कभी आजमाया जाएगा।
धन्यवाद दी! होमस्टे में रुकने का अनुभव इसलिए अलग होता है कि हम स्थानीय संस्कृति को करीब से जान पाते हैं।
रोमांचक यात्रा !
थके होने के बाद पैदल चलने खट्टा वाला ग़ुस्सा उगता है । 🙂
सच में 😊
बहुत ही अच्छा लिखा आपने, मेरा भी मन हो आया kasol जाने का , मैंने अभी अभी शुरू किया सोलो travelling .. शांतिनिकेतन गए थी .. बहुत अच्छा अनुभव रहा
बहुत दिलचस्प है. जैसे तुम देखकर शांत हो गयीं हम पढ़कर शांत हुए, भीतर की भी यात्रा है यह.
शुक्रिया इस टिप्पणी के लिए !