फ़ोटोग्राफी के अनुभव

फ़ोटोग्राफी के अनुभव

फ़ोटोग्राफी के मेरे अनुभव अलग-अलग प्रकार के हैं। अक्सर गले में कैमरा टाँगकर घूमने वाली लडकियों को लोग अजीब नज़रों से देखते हैं। कुछ लोग पत्रकार समझ लेते हैं और किसी को लगता है मैं दूरबीन लेकर दूसरों के घर में तांकझांक कर रही हूँ। इस पोस्ट में मैं आपको फोटोग्राफी से जुड़ने कि अपनी कहानी बताऊंगी ।

चित्रकला में मुझे बचपन से ही रुचि थी। छोटी थी तो अपने आसपास का कोई सादा कागज़ नहीं छोडती थी। सब पर कोई आकृति बना डालती थी। इसके लिए घरवालों से डांट भी ख़ूब खाती थी। बारहवीं तक मैंने कई चित्र बनाये और चित्रकला प्रतियोगिता में ख़ूब मैडल जीते।

इलाहाबाद हॉस्टल में पहुँचने के बाद कला से जैसे एकदम नाता टूट गया। काफी लंबे समय तक मैं रोजी-रोटी की उलझनों में उलझी रही…।  जब  इससे बाहर आयी और हाथ में कैमरे वाला स्मार्टफोन आया, तब कला के प्रति मेरी रुचि फोटोग्राफी की ओर मुड़ गयी। बहुत दिनों तक मैं मोबाइल कैमरे से ही फोटोग्राफ उनको एडिट करके खूबसूरत से खूबसूरत बनाने की कोशिश करती रहे। धीरे-धीरे फोटोग्राफी में रुचि बढ़ती चली गई एक डीएसएलआर लेना चाहती थी, लेकिन तब हाथ तंग था और प्राथमिकताएं भी अलग थी।

जब थोड़े-बहुत पैसे का जुगाड़ कर लिया तब मैंने डीएसएलआर लेने का निश्चय किया। मैं उस खुशी और अनुभव को बयान नहीं कर सकती, जो अपना पहला डीएसएलआर हाथ में लेकर मुझे हुआ। एक अलग सा उत्साह और उर्जा महसूस हुयी।  घूमना भी शुरू से पसंद ही था। अब डीएसएलआर के कारण जानबूझकर घूमने के बहाने ढूंढने लगी। जहां थोड़ा अवसर मिलता दिल्ली से बाहर निकल जाती। पहाड़ों पर प्राकृतिक दृश्यों के फोटो लेना यह सबसे अधिक पसंद है, लेकिन हर समय तो पहाड़ों पर जा नहीं सकते, तो मैं अक्सर अपने मोहल्ले के आसपास घूमती रहती।  कैमरा गले में लटकाए मैं अक्सर चिड़ियों को खोजा करती और उनकी तस्वीरें लेती।

फ़ोटोग्राफी के अनुभव
यह तस्वीर ओडीशा स्थित चिलिका झील की है

कभी-कभी मोहल्ले की कोई औरत पूछती मुझसे कि तुम दूरबीन लेकर क्या देखती हो? जब मैं उनसे बताती कि दूरबीन नहीं कैमरा है, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य होता कि अजीब लड़की है, कैमरा लेकर घूमती रहती है। किस्मत की बात है कि मेरा मोहल्ला यमुना के डूब क्षेत्र में पड़ता है। समुद्र तल से ऊंचाई कम होने के कारण यहाँ बारिश में अक्सर पानी भर जाता है, जो सर्दियों के मौसम तक रुका रहता है। सर्दियों में दिल्ली में हिमालय के उस पार से बहुत सारे अप्रवासी पक्षी आ जाते हैं। उनमें जलीय पक्षी भी होते हैं। मुहल्ले के आसपास भरे पानी में अक्सर प्रवासी पक्षियों के झुंड दिखते हैं। मैं अपना कैमरा लेकर कीचड़ और  झाड़ी में भटकती रहती और चिड़ियों की फोटो लेती रहती।

कई बार किसी बर्डसेंचुरी में जाने के बारे में सोचा, लेकिन मौका नहीं मिला। दिल्ली में ओखला बर्ड सेंचुरी ही जा पायी| मेरे पास चिड़ियों की जो भी तस्वीरें हैं, मेरे मोहल्ले के आसपास की ही हैं। मैं सोचती हूं  हमारे आसपास कितना प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा हुआ है, उस पर ध्यान ही नहीं देते। पक्षियों की इतनी सारी तस्वीरें लेने से पहले मेरी भी नजर नहीं पड़ी थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि जमीन पर, पेड़ों पर, जलभराव के आसपास मुझे इतनी तरह के पक्षी मिल जाएंगे।

लॉकडाउन का समय सभी के लिए भारी गुज़रा, मेरे लिए भी…लम्बे समय से कैमरा हाथ में नहीं लिया, अब फिर से…

आप मेरे इन्स्टाग्राम प्रोफ़ाइल पर मेरे द्वारा ली गयी तस्वीरें देख सकते हैं


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